Paroo Khas railway Station के अंडरपास में पानी जमा होने से यातयात प्रभावित, ग्रामीणों का धरना प्रदर्शन


परिचय (Introduction)

मुजफ्फरपुर के पारू खास स्टेशन के पास पारू मझौलिया चौक के नजदीक अंडरपास बनाना आज कल लोगों के लिए मुसीबत बन गया है। हर बारिश में ये अंडरपास एक छोटा तालाब बन जाता है। गाड़ियाँ, बाइक, ऑटो सब वहाँ से नहीं निकल पाते।

पारू से मझौलिया और जाफरपुर तक जाने वाली ये मेन रोड पूरी तरह से प्रभावित हो चुकी है। लोगों को रोज़ के सफ़र में मुश्किलें हो रही हैं। बहुत बार रेलवे विभाग को शिकायत दी गई, पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।

अब लोगो ने मजबूर होकर धरना और प्रदर्शन शुरू कर दिया है, ताकि सरकार और रेलवे दोनों को समझ आए कि गांव वालों और इस रास्ता से आने जाने वाले हर एक वाहन और यात्रियों को परेशानी कितनी बढ़ गई है।


पारू खास स्टेशन और उसका महत्व

पारू खास स्टेशन मुजफ्फरपुर का एक महत्वपूर्ण स्टेशन है। इसके माध्यम से कई गांव – जैसे हाजीपुर, वैशाली, पारू, मझौलिया, जाफरपुर, देवरिया और शाहेबगंज जुड़ते हैं। लोग रोज इस रास्ते से स्कूल, ऑफिस, अस्पताल, कोर्ट, कचहरी, थाना, बैंक, ब्लॉक और बाजारआते जाते हैं।

अंडरपास का उद्देश्य था कि लोग रेलवे लाइन के नीचे से आसानी से गुजर सकें। लेकिन अब ये सुविधा परेशानी में बदल गई है। जब भी तेज़ बारिश होती है, या बारिश नहीं भी होती है तो भी बरसात के मौसम में बारिश का जमा पानी आस पास के खेतो में जो इकठ्ठा होता है आसानी से अंडरपास में घुस जाता है. पूरा अंडरपास पानी से भर जाता है। ड्रेनेज सिस्टम बना ही नहीं है जिसके कारण बारिश का पानी निकालने का कोई उपाय नहीं है।

अब यह अंडरपास एक “छोटी नदी” जैसा लगता है, जहां से न बाइक जा सकती है, न ई-रिक्शा, न कार, न ऑटो। गाँव के लोगों ने इसको “डूबता अंडरपास” का नाम दिया है।


पानी जमा होना समस्या

अंडरपास में पानी जमा होने की वजह है अंडरपास बंद हो जाता है। बारिश का पानी निकलने का कोई रास्ता नहीं। एक बार पानी भर गया तो महिनो तक सुखता नहीं।

गांव के लोग बार-बार रेलवे को बताते हैं, पर कोई ठीक से नहीं सुनता। जब भी शिकायत होती है, बस “देख रहे हैं” या “जल्दी करवाएंगे” का जवाब मिलता है। पर ज़मीन पर कोई काम नहीं I

बारिश के बाद पानी इतना गहरा हो जाता है कि छोटी गाड़ियाँ डूब जाती हैं। पैदल चलने वालों को घुटने तक पानी में चलना पड़ता है। कई बार लोग गिर कर चोट खा चुके हैं। बच्चों और बुजुर्गों के लिए तो ये जगह बहुत ख़तरनाक बन चुकी है।


रोज़मर्रा की ज़िन्दगी

ये अंडरपास बंद होने से हजारों लोगों की दैनिक जीवन प्रभावित हो गई है।

  • स्कूल जाने वाले बच्चों को चक्कर लगाना पड़ता है।
  • ऑफिस और मार्केट जाने वाले लोग देर से आते हैं।
  • सरकारी स्कूल जाने वाले सर और मैडम स्कूल समय पर नहीं पहुँच पा रहे है ।
  • किसान और दुकानदार अपना सामान समय से नहीं पंहुचा पा रहे है
  • ऑटो और ई-रिक्शा चालकों का रोज़ काम बंद हो गया है।

लोगों को मजबूरी में 3-5 किमी लंबा चक्कर लगाकर दूसरे रास्ते से जाना पड़ता है। इसमें टाइम और पैसे दोनो ज्यादा लगते हैं। जो की आम आदमी के जेब पर असर पड़ता है इस महंगाई के दौड़ में आसान नहीं है गरीब मजदूर किसान लम्बी दूरी तय करके जाए इसी बीच अगर कोई बीमार हो या डेलिवेरी हो तो एम्बुलेंस का जाना भी मुश्किल होता है ।

पानी जमा होने के वजह से मच्छर भी बढ़ गए हैं। काई लोग डेंगू और बुखार से परेशान हैं। इसलिए ये सिर्फ पानी की समस्या नहीं, स्वास्थ्य समस्या भी बन गई है।


रेलवे विभाग की लापरवाही

रेलवे के अधिकारियों को कई बार लिखा और मुंह से शिकायत दी गई। पर उनको बस औपचारिकता निभानी, काम कुछ नहीं हुआ। हर बार कहते हैं “निरीक्षण होगा,” लेकिन कभी होता नहीं।

लोग कहते हैं कि शायद उन्हें किसी बड़े एक्सीडेंट का इंतज़ार है, तभी कुछ करेंगे। ये बात सुन कर गांव वालों में गुस्सा और बढ़ गया।

लोगों का कहना है – “हमारा नेता और रेलवे डोनो अंधे हो गए हैं, उन्हें हमारा दुख दिखाई नहीं देता।” ये गुस्सा अब आंदोलन में बदल गया है।


ग्रामीणों का धरना और प्रदर्शन

जब कोई सुन नहीं रहा था, तो पारू मझौलिया और आसपास के ग्रामीण लोग और राही के लोग खुद सड़क पर उतर आये। मझौलिया चौक के पास लोगो ने जामकर नारा लगाया –
“रेलवे जागो, हमारा दर्द समझो!”

पुरुष, महिला, युवा सब ने मिलकर धरना किया। लोगो ने पोस्टर और बैनर लेकर विरोध किया। बहुत से लोग पानी में खड़े होकर फोटो और वीडियो बनाया हैं जिसे ये मुद्दा social media पर वायरल हो गया है।

ये विरोध पूरी तरह शांतिपूर्ण (Peaceful) था, पर उसका प्रभाव बड़ा था। लोगों ने बताया कि ये लड़ाई सिर्फ पानी के खिलाफ नहीं, जिम्मेदार सरकार और सिस्टम के खिलाफ है।


युवा, नेताओ और ग्रामीणो का योगदान

इस आंदोलन में वसी आलम उर्फ़ प्यारे, नेयाज़ और बेताब सिद्दीकी जैसे युवा नेता और पंचायत के सदस्‍य आगे हैं। वसी आलम ने कहा,
“हमने कई बार चिट्ठी लिखी, मुलाकात की, पर कोई सुनवाई नहीं हुई। अब मजबूर होकर सड़क पर उतरना पड़ा।”

युवा नेता नियाज ने कहा कि अगर समस्या का समाधान नहीं हुआ तो हम यह विरोध प्रदर्शन आने वाले समय में जारी रखेंगे, क्योंकि लोगों को दैनिक परिवहन और आवाजाही में गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

बेताब सिद्दीकी ने कहा,
“हर बारिश में ये अंडरपास एक झील बन जाता है। बच्चे स्कूल नहीं जा पाते, मरीज अस्पताल नहीं पहुँचते। अब और बर्दाश्त नहीं।”

युवा नेताओं ने लोगो को जोड़ा और आंदोलन को मजबूत बनाया। उनका कहना है कि ये मुद्दा पार्टी पॉलिटिक्स का नहीं, इंसानियत का है। समाज सेवा का है और हर रास्ता चलने वालो के दुखो को समझ कर इस समस्या को सुलझाने का है ।


नेताओ और प्रतिनिधियों की चुप्पी

गांव के लोग बीजेपी के 4 बार के MLA और MP से नाराज हैं। अनहोन कहा –
“उनकी आँखों में मोतियाबिंद हो गया है क्या? उन्हें हमारी तकलीफ़ दिखती नहीं?”

चुनाव के समय नेता हर गली में आते हैं, पर काम के समय गायब हो जाते हैं। इसलिए लोग उन्हें “बरसाती मेढ़क” (मानसून मेंढक) कह कर मज़ाक उड़ाते हैं।

लोग कहते हैं, “हमें वोट के समय याद करते हैं, पर बाद में भूल जाते हैं।” ये गुस्सा अब पूरी तरह से सार्वजनिक विद्रोह में बदल रहा है।


सुरक्षा का ख़तरा (Safety Risk)

पानी जमा होने से अंडरपास में कोई दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। बाइक स्किड कर गिर गई, ऑटो डूब गया, लोग पानी में फिसल कर गिर गए।

रात में तो और भी खतरा बढ़ जाता है क्योंकि लाइट नहीं है। एम्बुलेंस भी हमारे रास्ते से नहीं निकलती, इससे मरीज़ को डर हो जाता है।

लोगों का कहना है – अगर तुरंत कोई कदम नहीं उठाया गया, तो बुरा हादसा हो सकता है। उनकी माँग है –

  • अंडरपास में ड्रेनेज सिस्टम बनाओ,
  • सड़क स्तर ऊपर उठाओ,
  • और हर साल सफाई और रखरखाव करो।

सामाजिक मीडिया और जन आंदोलन

सोशल मीडिया ने इस मुद्दे को देश भर में वायरल कर दिया। फेसबुक और व्हाट्सएप पर लोगों ने पानी में डूबी बाइक और कार की फोटो शेयर की। हैशटैग #FixParooUnderpass और #RailwayNegligence ट्रेंड होने लगे।

लोग लिखने लगे –
“बुलेट ट्रेन से पहले बेसिक रोड ठीक करो!”
“ये पानी नहीं, सिस्टम की जिम्मेदारी है।”

न्यूज चैनल और पत्रकार भी पहुंच गए और लाइव कवरेज दी। ऐसे में सरकार पर दबाव बढ़ गया।


रेलवे और सरकार का जवाब

मीडिया और विरोध के बाद रेलवे ने बस एक छोटी सी प्रेस विज्ञप्ति दी –
“बारिश ज़्यादा होने के कारण पानी जमा हुआ है, हम देख रहे हैं।”

पर ग्राउंड पर अब तक कुछ नहीं हुआ। ना कोई पंप मशीन लगी, ना ड्रेनेज साफ हुआ। रेलवे और स्थानीय पीडब्ल्यूडी एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं।

लोग कह रहे हैं – “बिना राजनीतिक दबाव के कुछ नहीं होने वाला।


ग्रामीणो की मांगे

गांव वालों ने अपनी 5 मांगे राखी हैं:

  • अंडरपास में उचित जल निकासी व्यवस्था बनाई जाए।
  • हर बारिश के बाद सफाई और पंपिंग की जाएगी।
  • रोड को ऊंची पर बनाया जाए ताकि पानी न टिक सके।
  • स्ट्रीट लाइट और सेफ्टी बोर्ड लगाए जाएंगे।
  • रेलवे और स्थानीय सरकार दोनों मिलकर संयुक्त निरीक्षण करें।

ये सब छोटी मांगे hain, par log chahte hain permanent solution, na ki bas ek din ka kaam.


निष्कर्ष(Conclusion)

पारू खास स्टेशन का अंडरपास एक छोटी सी समस्या लगती है, पर यहां हजारों लोगों की जिंदगी प्रभावित हो रही है।

गांव वालों ने साफ कह दिया है – अगर सिस्टम नहीं सुनता तो हम सड़क पर बैठ कर अपनी आवाज उठाएंगे। ये लड़ाई सिर्फ पानी की नहीं, इज्जत और जीने के अधिकार की है।

रेलवे और सरकार दोनों को अब तुरत कदम उठाना चाहिए। अगर अब भी कुछ नहीं हुआ तो लोगों का विश्वास टूट जाएगा। पैरो के लोगों ने दिखाया है – “ग्रामीण अब चुप नहीं बैठेंगे!”


अंतिम संदेश

“सरकार और रेलवे दोनो याद रखे – हम वोट देते हैं, हम टैक्स देते हैं, तो सुविधा भी हमारा अधिकार है।”

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